रायपुर, 11 नवंबर। पुराणों के अनुसार प्रबोधिनी एकादशी का व्रत रखने, इस दिन भगवान श्री विष्णु जी की पूजा करने से समस्त तीर्थों के दर्शन, सौ राजसूय यज्ञ और हज़ार अश्मेघ यज्ञ से भी अधिक पुण्य प्राप्त है। अगर इस एकादशी का व्रत ना रख पाए तो भी इस दिन इस एकादशी का महत्व, इस एकादशी की कथा अवश्य ही पढ़नी सुननी चाहिए। इस बार 12 नवंबर दिन मंगलवार को प्रबोधनी एकादशी का व्रत रखा जाएगा।
कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को देव उत्थान एकादशी / देव उठानी एकादशी / प्रबोधिनी एकादशी कहते है। देव उत्थान का तात्पर्य है देव का उठना या जागना।’ शास्त्रों के अनुसार एक समय भगवान श्री विष्णु का शंखचूर नामक महाअसुर से घोर युद्ध हुआ, अंत में विष्णु जी ने उसे परास्त करके यमपुरी भेज दिया।
युद्ध करते हुए भगवान स्वयं भी काफी थक गये तो वह चार मास के लिए योगनिद्रा में चले गये। जिस दिन भगवान योग निद्रा में शयन के लिए गये उस दिन आषाढ़ शुक्ल एकादशी की तिथि थी, शास्त्रों के अनुसार उस दिन से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक भगवान योग निद्रा में रहते हैं अत: इन चार मासों में मांगलिक कार्य नहीं होते है।
कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन जब भगवान अपनी निद्रा से जगते हैं तो उसी दिन से शुभ दिनों की, शुभ कार्यो की शुरूआत होती है, अत: इस दिन को देव उत्थान एकादशी कहते है।
एक अन्य कथा के अनुसार एक समय भगवान श्री विष्णु जी से माँ लक्ष्मी जी ने कहा- ‘हे प्रभु ! अब आप दिन-रात जागा करते हैं और सोते हैं तो लाखों-करोड़ों वर्ष तक को सो जाते हैं तथा उस समय समस्त चराचर का नाश भी कर डालते हैं। अत: हे नाथ मेरी आपसे प्रार्थन है कि आप प्रतिवर्ष नियम से निद्रा लिया करें। इससे मुझे भी कुछ समय विश्राम करने का समय मिल जाएगा।’
देवी लक्ष्मी जी की बात सुनकर भगवान श्री विष्णु जी मुस्काराए और बोले- ‘हे देवी’! तुमने ठीक कहा है। मेरे लगातार जागने से सब देवों को और विशेष कर आपको भी कष्ट होता है। आपको मेरी सेवा से जरा भी अपने लिए अवकाश नहीं मिलता। इसलिए, मैं आपके कहेनुसार आज से प्रति वर्ष वर्षा ऋतु में चार मास के लिए शयन किया करूंगा। उस समय आपको और सनी समस्त देवगणों को अवकाश मिल जायेगा।
विष्णु जी ने आगे कहा मेरी यह निद्रा अल्पनिद्रा और प्रलयकालीन महानिद्रा कहलाएगी। यह मेरी अल्पनिद्रा मेरे सभी भक्तों के लिए परम मंगलकारी और पुण्य प्रदान करने वाली होगी। हे प्रिये, मेरे इस निद्रा के काल में मेरे जो भी भक्त पूर्ण श्रद्धा से मेरी सेवा करेंगे उनके घर में मैं सदैव आपके सहित निवास करूँगा।
देव प्रबोधनी एकादशी का व्रत रखने वाले व्यक्ति को दशमी के दिन से ही सात्विक आहार लेना चाहिए। इस एकादशी के दिन सर्योदय से पूर्व उठाकर स्नान आदि करके पूर्ण विधि से भगवान विष्णु एवं लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए। इस दिन विष्णु भगवान को तुलसी का पत्ता चढ़ाएं। लेकिन जातक जो व्रत कर रहे हों उन्हें स्वयं तुलसी पत्ता नहीं तोड़ना चाहिए।
इस दिन तुलसी विवाह का भी बहुत महत्व है । इस दिन संध्या काल में भगवान श्री विष्णु की शालिग्राम रूप में पूजा करनी चाहिए। इस एकादशी का व्रत करने वालों को द्वादशी के दिन सुबह ब्रह्मण को भोजन करवा कर पीला जनेऊ, सुपारी एवं दक्षिण देकर विदा करना चाहिए फिर अन्न जल ग्रहण करना चाहिए। शास्त्रों में इस व्रत का परायण तुलसी के पत्ते से करने का विधान बताया गया है।